kanchan singla

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चांदनी रात

चांदनी सी एक रात हो
खुली फिजाओं का साथ हो
चांद बहता हो नदिया भीतर
निहारूं उसे बैठ नदिया किनारे
सोचूं गुम जाऊं कहीं
आखें खोलूँ तो पाऊं
सितारों सा जगमग आसमान हो 
चांद सी शीतलता हो
धुंधली धुंधली फैली रोशनी का शमां हो
एक खिड़की हो कहीं 
जो खुलती हो चांद से आसमान में
धरा सूक्ष्म सी दिखती हो उससे
कोरा सा सन्नाटा फैला हो 
हवाओं के शोर से वो टूटता हो ।।

एक दरवाजा खुलता हो कहीं
जब खोलूं उसे 
सितारों का जहां दिखता हो वहीं
कोई मीठी सी धुन बजती हो
पास जाकर सुनने पर पता चलता हो
नदिया का पानी कल कल बहता हो कहीं
सरगम सी कोई धुन छेड़ता हो वही ।।

एक छोटी सी बगिया हो वहीं
खिले फूलों से महकी हो
रसभरे फलों से भरी हो
पंछियों की चहचाहट हो
सुकून भरा समां हो
जब निंद्रा टूटे मेरी 
चांद आसमान से विदा ले रहा हो
एक वादे संग 
फिर से चांदनी रात में लौट आने को
फिर से एक मीठा सा स्वपन्न दिखाने को ।।

लेखिका - कंचन सिंगला 
लेखनी प्रतियोगिता -09-Nov-2022

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7 Comments

Gunjan Kamal

15-Nov-2022 06:11 PM

बहुत ही सुन्दर

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Teena yadav

11-Nov-2022 11:25 AM

Osm

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Pratikhya Priyadarshini

10-Nov-2022 08:30 PM

Very nice 👌🌺💐

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